प्रारब्ध पूर्व जन्म में किए गए कर्मों को प्रारब्ध कहते हैं। जिसे लोग भाग्य के नाम से भी जानते हैं। मनुष्य नित्य कुछ ना कुछ कार्य करते ही रहते हैं जिसे कर्म कहते है। अच्छा कार्य करने से अच्छे कर्म और बुरा कार्य करने से बुरे कर्म बनते हैं।

प्रारब्ध का अर्थ
ईश्वर ने मनुष्य को पूर्ण छूट दी हैं वह चाहे जेसेकर्म करे अपनी ईच्छा अनुसार । Free wheel है स्वयं ले सकते हैं। मनुष्य जैसे कर्म करते तद्नुसार उनके संस्कार बनते रहते हैं और वैसे ही स्वाभाव की रूपरेखा तैयार होना शुरू हो जाती हैं। जाहिर है जैसे कर्म होंगे वैसे ही सुख दुःख भी भोगने पड़ते हैं।
प्रारब्ध कर्मों से आज तक कोई बच नहीं पाया चाहे वह अच्छे हों या बुरे हर कोई इस पृथ्वी पर जन्म इस उद्देश्य से ही लेता है ताकि कर्मों के चक्रव्यूह से मुक्त होकर कर्मों के लेन देन के हिसाब को पूर्ण रूप से खत्म कर मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सके। कभी कभी जानें अनजाने ऐसे कर्म भी कर लेते । कई बार अच्छे बुरे का एहसास भी नहीं हो पाता कर्म बन्धन में बंध जाते। या किसी के लिए बुरा मन में बुरे और कुविचार से भी कर्म बन जाते है।
प्रारब्ध भोगने के तीन तरीके होते है
मंद प्रारब्ध
जो ईश्वर की आराधना भक्ती करने मात्र से ही मिट सकती हैं। जो साधक की ईश्वर के प्रति भक्ती श्रध्दा और समर्पण भावना होती हैं उनकी ये प्रारब्ध कर्म आसानी से ईश्वर कृपा से ये कर्म भोग खतम हो सकता हैं।
तीव्र प्रारब्ध
तीव्र प्रारब्ध में पिछले जन्म के तीव्र कर्मों के कारण भोगने के लिए सिर्फ भुगतने से ही नहीं नष्ट हो जाते अपितु इसके साथ ही ध्यान की गहराई में उतरकर गहरे ध्यान साधना द्वारा या बहुत अत्यधिक मंत्र जप से मुमकिन हो सकता हैं। यदि खुशकिस्मती से कोई सच्चे गुरु मिल जाए तो गुरु मार्गदर्शन पर चलकर भी प्रारब्ध को नष्ट हो सकते हैं।
इच्छित प्रारब्ध
इसका अर्थ है ऐसे कार्य या कर्म जो हम हमारी पसंद का खुशी से करते हैं। हमारी ईच्छा रहती है हमे करने में आनंद और मन में संतोष महसूस होता हैं।
परेच्छा प्रारब्ध
जो दुसरो के लिए किए गए हों उनके हित के लिए कोई भलाई का कार्य या कर्म किया जाए। संपूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए , मानव जीवन में मार्गदर्शित के उद्देश्य से निस्वार्थ भाव से सेवा की जाती हैं। जैसे कोई महान गुरु कोई pure positive soul ही ऐसे महान कार्य करते हैं। ऐसे लोगो को ईश्वर की महान पुण्य की प्राप्ति होती हैं।
गरीबों को दान पुण्य करना भी एक पुण्य कर्म है। पर दुसरो को मदद के लिए किए गए दान कभी भी गुप्त तरीके से करना चाहिए। Ego नहीं आना चाहिए दान करते हुए नही तो यह तीव्र प्रारब्ध में convert हो सकता हैं।
ईश्वर किसी भी जीव का नियामक या नियंता दोनों हैं। ईश्वर किसी भी जीव के प्रति ना कठोर है ना ही दयालु हर जीव अपने कर्मानुसार फल पाता है इसमें भगवान की कोई भी व्यक्तिगत आक्षेप या हस्तशेप नहीं हो सकता हैं।
अति तीव्रतम प्रारब्ध
जो कर्म सिर्फ भोगने के बाद ही समाप्त हो सकते हैं जिनका दूसरा कोई विकल्प नहीं। यदि एक जन्म मे समाप्त नहीं हो पाता तो बार बार जन्म लेना पड़ सकता हैं इस प्रकार के प्रारब्ध कर्म को समाप्त करने के लिए। यदि नियमपूर्वक ध्यान साधना करते तो ईश्वर आपको उसे भोगने और उस यातना दर्द सहन करने की क्षमता देते है।
कर्म फल सिद्धांत
यदि कोई व्यक्ति आपको dominate कर रहा है इसका अर्थ है आप उसे allow कर रहे हो उस व्यक्ती से आप emotinally attached हो। Sub conscious level पर आपके aura energy enter कर रहीं हैं। आप physical body से नहीं mental body से detached होइए।
दुसरो के कर्मो की सजा हमे क्यों मिलती हैं?
क्या आपने ऐसा कभी सोचा क्यों होता हैं ऐसा?
दूसरा आपको सता रहा है तो भी आप उससे attached रहते हो क्यों? सोचिए सोचिए इस बात में बहुत गहराई हैं।
चलिए आपको बता देती हूं। यह सिर्फ़ हमारे लगाव के कारण होता हैं। हम उस व्यक्ती से हर वक्त मानसिक तौर पर जुड़े रहते हैं। जरुर नहीं की प्यार के या अच्छे ही emotions हो कभी कभी जो हमे तंग कर रहा परेशान कर रहा हम उस व्यक्ती के बारे में ही विचार करते रहेंगे और मानसिक रूप से जुड़े रहते है। Negative emotions से connect रहे या positive emotions से आप कुछ भी नहीं करों तो भी automatically vibration transfer exchange होने लगते हैं और यही हैं जुड़े रहने के कारण।
और भी details में video में बताया आप video जरूर देखिए आपको सबकुछ समझ आएगा ।

कर्म मुक्ति; खुद ही बंधे हैं खुद ही मुक्त होंगे
Attachment किसी से भी किसी प्रकार का रखना। चाहे आप किसी से रखे या आप से कोई रखे इसका साफ अर्थ है उम्मीद रखना । अपेक्षा रखना जो चाहते वह करके दे और जब ये अपेक्षा पूरी नही हो पाती तो यही से दुःख और क्रोध की शुरुआत हो जाती हैं।
Emotional connection चाहे वह प्रेम की उम्मीद के लिए या अपना हक या अधिकार पाने के लिए हो या Protection के लिए ही सही emotionally connect है। इतना गहराई तक हो सकती हैं ये सब भावनाएं कि इनसे detachment तो असंभव सा ही है।
इसी Emotional attachment के कारण उस व्यक्ती से हमारे कुदरती संबंध बन जाते हैं। दिल दिमाग मे उसकी अस्तित्व की छाप इस तरह छा जाती हैं कि हम उससे एक अदृश्य बंधन में बंध जाते हैं।
ये बंधन ऐसे बंध जाता हैं कि हम खुद उस व्यक्ती के मोहपाश में बंधते चले जाते हैं और ऐसे बंधन में खुद को बांध लेते है। मुक्त होने की इच्छा ही नहीं होती उसीसे से बंधे रहने में आनंदित होते और यहीं से शुरू हो जाता कर्मबंधन।
जरूरी नहीं कि किसी से प्रेम हो तो ही बंधा हो कोई कोई बंदे दुनियां में ऐसे जिनमें क्रोध और बदले की भावना दिल के अंतिम सतह तक छिपी होती हैं। उनका उद्देश्य कहिए या मकसद बदला लेना होता है ऐसे बंदे भी मानसिक रूप में बदले की भावना के कारण दूसरे से जुड़े रहते हैं। यह भी एक प्रकार का कर्मबन्धन ही है।
इस प्रकार जाने अंजाने चाहे अच्छे या बुरे उद्देश्य से व्यक्ती दूसरे व्यक्ती से जुड़ा रहता है। उसके मस्तिष्क में भी निरंतर उसके विचार का आवागमन चलने से mentally attached हो ही जाता हैं। कुदरत का तो नियम ही है आप जिनसे भी जुड़े जो भी कर्मो से उनके automatically आप energy, emotion and vibration खुद मे transfer कर रहे हैं।
अब जब transformation शुरू कर लेते है तो आप उसके अच्छे बुरे कर्म के भागीदार अंजाने में ही बन जाते है।
पहले आप दूसरे बंदे से emotionally attached होकर mentally connect हुए फिर energy से भी connect जिसका परिणाम कर्मो का बहीखाता हमारा खुलता जाता हैं नया और ये सिलसिला जन्मोजनमंतर तक बढ़ने लगता हैं।
अब ये सब घुमावदार प्रक्रिया जो हमे मुक्त भी नही होनी देती ना ही कर्म कम कर पाते हम खुदके तो इसका एक ही रास्ता है आपको बताऊं Detachment.
Forgive And Forget का ये एक formula हर एक के साथ अपनाया जाय तो ही emotinal के मायाजाल से बचा जा सकता है।
कर्मफल का सिद्धांत कर्म करते जाए ताकि कर्म का बोझ कम होकर मुक्ति मिल सके। ना किसी से अपेक्षा रखे ना उम्मीद क्योंकि जहां होगा ये वहा दुःख अपना पैर पसारेगा।
Conclusion
मैनेआपको प्रारब्ध के प्रकार और किस प्रकार से भोगने पड़ते हैं वह बताने की कोशिश की हूं। प्रारब्ध की मार ही ऐसी है इससे कोई भी जीवात्मा बच नहीं सकती हैं। इसीलिए कोशिश कर सकते है कि हम सदा अच्छे कर्म ही करे नही भुग्त भोगी तो हमे ही बनना होगा।
कर्म मुक्ति के बारे में भी समझाने की कोशिश की हैं ये मेरा अपना अनुभव शेयर की हू। 30 साल का मेरा ध्यान की गहराई में उतरने के बाद मुझे जो बात कुदरत के नियम के अनुसार सच लगा वही बताया ताकि दूसरे लोगों को भी मार्गदर्शन मिल सके।
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jai shree krishna
ॐ नमः शिवाय