हरे कृष्ण
जीवात्मा की सच्चाई,
😘 जिन्दगी के सफरनामे पर हर जीवात्मा को अपने अपने सफर तय करने निकल पड़ती हैं। जन्म लेते ही एक शिशु का पूर्णता से संपूर्णता की यात्रा शुरू हो जाती हैं। हर जीवात्मा अपने कर्मो के लेने देने के चक्रव्यूह से खुद को मुक्त कराने के लिए जन्म लेती रहती हैं। इस पृथ्वी पर जन्म लेते ही शुरू हो जाता हैं कर्मो का हिसाब। यदि जीवात्मा अच्छे कर्म पूर्व मे हुए तो वह सुख को अनुभव करती हैं, बुरे कर्म हुए तो दुख का अनुभव करती हैं। ईश्वर ने हमें फ्री व्हील दिया है हर जीवात्मा खुद की इच्छा अनुसार खुद के निर्णय ले सकती हैं। यदि किसी जीवात्मा को जन्म मरण के चक्रव्यूह से मुक्त होना है मोक्ष मार्ग पर चलना है तो आध्यात्मिक रास्ते पर चलना ही एकमात्र विकल्प हैं। ध्यान साधना के सन्मार्ग पर चलकर जीवात्मा को अपने हर कर्म से निवृत्ति मिल सकती हैं। प्रकृति कभी भी माप तौल कर अपने नियम पर ही चलती हैं। प्रकृति का नियम जो कुछ भी लिया है उसे वापिस लौटना ही है। जो जीवात्मा नही लौटना चाहती खुद के लिए ही लेने देने के कर्मो का पहाड़ खड़ा कर खुद को ही कर्मो के बोझ तले दबा डालती हैं। हम एक दूसरे को जरूर माफ कर देंगे, पर प्रकृति कभी माफ नहीं करती किसी को भी। जन्म मरण का यह साइकल बीना रुके चलता ही रहता है और जीवात्मा उस में ही फसकर तड़पती रहती। इसीलिए ध्यान साधना की गहराई में डूबकर , ध्यान के भवसागर में तैरकर ईश्वर के शरण में जाकर खुद को समर्पित करना ही ही हर जीवात्मा के लिए सबसे अच्छा तरीका है।
मेरी आप बीती
जब इंसान को कोई भी मुसीबत आती हैं तो हर मनुष्य ये नही समझ पाता की यह मुसीबत क्यों आई है। तकलीफों परेशानियों को झेल कर स्वयं को ही शक्तिहीन, लाचार समझकर उदास हो जाता और भी कोशिश करना ही छोड़ देता है। चाहे वह शारीरिक रोग हो या कुछ भी हो। मैने भी ऐसा ही अनुभव किया मेरे जीवन में, एक ऐसे मोड़ पर। मैं हर्षा खंडेलवाल मैं भी नियमपूर्वक नित्य प्राणायाम, ध्यान बड़ी तल्लीनता से करती थी। ऐसा करते करते मेरी कुण्डलिनी शक्ति जो सुप्त अवस्था में थी, वह जागृत हो गई। जैसे ही कुंडलिनी जागृत मेरे शरीर में लगातर कंपन रहती थी, चौबीस घंटे पेट के दोनों तरफ एक असहनीय दर्द होता रहता था।
: बड़े बड़े डॉक्टर्स, स्पेशलिस्ट को भी दिखा दिया, एलोपैथी, आयुर्वेदिक सभी दवाई आजमाकर देख ली। बाहर भी कई गुरु से संपर्क किया, स्पिरिचुअल सेंटर्स पर भी गई इस उम्मीद से की कोई किसी के पास कुछ तो उपाय पता चले। पर कही भी संतोषजनक कुछ नहीं मिला। बाहर भटकने के बाद जब मैं अपनी अंतरात्मा के भीतर झांका तो मैने पाया एक विराट miraculous मैजिकल वर्ल्ड जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। अंतर्मन की यात्रा शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया, आध्यात्मिकता मे तो पहले से अवतरित तो थी पर हमारी भीतर इतने पवित्र उज्वल अमूल्य धरोहर है ये मुझे पता चला। मुझे मेरे दर्द का परेशानी का समाधान मेरे अंतर्मन की यात्रा करने पर मिला, हर प्रकार की मुक्ति का रास्ता। यहां हम ईश्वर को समर्पित हुए उधर ईश्वर ने हमें भी स्वीकार किया। सब कुछ ठीक होता गया, उच्च से अच्छाई का समय और महत्व पता चला।